BY: Vikas Yadav
ज़िंदगी भर की मेहनत लगती है अलग पहचान बनाने में , दो पल का आलस लगता है फिर से भीड़ में मिलाने में।
यु जमीन पर बैठ कर क्यों आसमान देखता है। पंखो को खोल जमाना सिर्फ उड़ान देखता है
आखो में नींद बहुत है पर सोना नहीं है, यही समय है कुछ करने का इसे खोना नहीं है।
सीढ़ियां उन्हें मुबारक हों, जिन्हें सिर्फ छत तक जाना है, मेरी मंज़िल तो आसमान है, रास्ता मुझे खुद बनाना है।
जिंदगी मिली है तो कुछ बन के दिखाऊंगा, आज वक़्त खराब है तो क्या हुआ जनाब, कल बदल कर दिखलाऊंगा।
हौंसले जिनके अकेले चलने के होते हैं, एक दिन उनके पीछे ही काफ़िले होते हैं।
खोल दे पंख मेरे कहता है परिंदा, अभी और उड़ान बाकी है। जमीन नहीं है मंजिल मेरी अभी तो पूरा आसमान बाकी है।
अपने हौसले बुलंद कर, मंज़िल तेरे बहुत करीब है, बस आगे बड़ता जा, यह मंज़िल ही तेरा नसीब है।