BY: Vikas Yadav
एक सूरज था कि तारों के घराने से उठा, आँख हैरान है क्या शख़्स ज़माने से उठा।
यही सोच कर हर तपिश में जलता आया हूँ, धूप कितनी भी तेज हो समंदर नहीं सूखा करते।
काम करो ऐसा कि एक पहचान बन जाये, हर कदम ऐसा चलो कि निशान बन जाये, यहाँ ज़िन्दगी तो हर कोई काट लेता है, ज़िन्दगी जियो इस कदर कि मिसाल बन जाये।
दीया बुझाने की फितरत बदल भी सकती है, कोई चिराग हवा पे दवाब तो डाले।
सुख दुःख की धूप-छाँव से आगे निकल के देख, इन ख्वाहिशों के गाँव से आगे निकल के देख, तूफान क्या डुबायेगा तेरी कश्ती को, आँधियों की हवाओं से आगे निकल दे देख।
नहीं चल पायेगा वो एक पग भी, भले बैसाखियाँ सोने की दे दो, सहारे की जिसे आदत पड़ी हो, उसे हिम्मत खड़े होने की दे दो।
जिन के होठों पे हँसी पाँव में छाले होंगे, वही लोग अपनी मंज़िल को पाने वाले होंगे।
अगर पाना है मंज़िल तो अपना रहनुमा खुद बनो, वो अक्सर भटक जाते हैं जिन्हें सहारा मिल जाता है।
जो न पूरा हो उसे अरमान कहते हैं, जो न बदले उसे ईमान कहते हैं, ज़िन्दगी मुश्किलों में भले ही बीत जाये, पर जो झुकता नहीं उसे इंसान कहते हैं।